न्यायपालिका एंव सर्वोच्च न्यायालय

  • भारत में एकीकृत न्यायपालिका है जबकि अमेरिका में केन्द्र और राज्य स्तरों पर अलग-अलग दोहरी न्यायपालिका है। भारत में संवधिान सर्वोच्च है जबकि अमेरिका में न्यायपालिका भी सर्वोच्च है। इसीलिए अमेरिकन व्यवस्था के बारे में कहा जाता है कि यहाँ संविधान वही है जिसे जज कहते हैं। 
  • 1773 के अधिनियम में बंगाल के लिए एक सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया था जिसका गठन मुख्य न्यायाधीश एलीजा इम्पे के नेतृत्व में 1774 में कलकत्ता में हुआ। यह संघीय भावनाओं के अनुरूप नहीं था। इसीलिए संविधान में इसे स्थान नहीं दिया गया। 
  • 1935 के अधिनियम में संघीय भावनाओं के अनुरूप फेडरल न्यायालय का प्रावधान किया गया, जिसका गठन 1937 में दिल्ली में माॅरिस ग्वायर की अध्यक्षता में हुआ। फेडरल कोर्ट को 26 जनवरी 1950 को सुप्रीम कोर्ट बनाते हुए संविधान में स्थान दिया गया और इसे सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय बनाया गया। 
  •  भारत की न्यायपालिका को सरकार से स्वतंत्र इसलिए बनाया गया  है, ताकि वह निष्पक्ष न्यायिक निर्णय देते हुए संविधान और विधि की रक्षा एवं व्याख्या कर सके। उल्लेखनीय है कि जजों की नियुक्ति, पदच्युति, वेतन, शपथ आदि के मामलों में केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती, इसीलिए न्यायपालिका सरकार से स्वतन्त्र रह कर कार्य करती है। निम्नलिखित कारणों से न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाया गया है-
  1. संविधान एवं विधि की व्याख्या एवं रक्षा के लिए:- सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट अपने न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति के माध्यम से संविधान एवं विधि की रक्षा एवं व्याख्या करती है संविधान देश का प्राथमिक कानून होता है, जो उस देश के भू-खण्ड पर जनता पर और सरकार पर लागू होता है।
  2. मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए:- भारतीय संविधान के भाग-तीन में व्यापक रूप से मौलिक अधिकारों का प्रावधान है। इसकी रक्षा का दायित्व न्यायपालिका पर है। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय अनु0 32 के अन्तर्गत तथा हाईकोर्ट अनु0 226 के अन्तर्गत पाँच प्रकार की रिटें जारी कर मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।
  3. प्रगतिशील न्यायिक निर्णय देने हेतु:- न्यायापालिका ने जनहित में ढेर सारे प्रगतिशील न्यायिक निर्णय दिये। जैसे-शिक्षा मौलिक अधिकार है (मोहिनी जैन केस) चिकित्सा पाने का अधिकार मौलिक अधिकार है (परमानन्द कटारा केस) आदि।
  4.  संघीय भावनाओं को मजबूत करने के लिए:- सर्वोच्च न्यायालय केन्द्र और राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों को तथा राज्य और राज्य के मध्य उत्पन्न विवादों पर अंतिम निर्णय देती है। इसीलिए उच्चतम न्यायालय को संघवाद का सन्तुलन चक्र कहा जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय:-

भारतीय संविधान के भाग-5 में अनु0 124 से अनु0 147 तक सुप्रीमकोर्ट का प्रावधान किया गया है।
गठन (नियुक्ति) 
अनु0 124 के अनुसार भारत के लिए एक उच्चतम न्यायालय  होगा। उच्चतम न्यायालय के जजों की संख्या जब तक संसद विधि द्वारा न बढ़ाये तब तक 71 = 8 होगी। अर्थात् मूल संविधान में 8 जजों का प्रावधान था।

  • 1956 में 101 = 11
  • 1960 में 131 = 14
  • 1977 में 171 = 18
  • 1986 में 251 = 26
  • 2009 में 301 = 31

अनु0 124 के अनुसार राष्ट्रपति जी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में उच्चतम न्यायालय एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेंगे।
न्यायिक निर्णय:- सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट आॅन रिकार्ड केस (1993) के अनुसार किसी न्यायाधीश की नियुक्ति तभी संभव है जब राष्ट्रपति जी अनिवार्य रूप से मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेंगे और मुख्य न्यायाधीश अपना परामर्श दो वरिष्ठ जजों के परामर्श के साथ देंगे। 1998 में न्यायालय ने इसमें संशो
धन करते हुए कहा मुख्य न्यायाधीश अपना परामर्श चार वरिष्ठ जजों के पैनल के परामर्श के साथ देंगे। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में अनिवार्य रूप वरिष्ठता का अनुपालन होगा 120वां संविधान संशोधन विधेयक (2013) में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का प्रावधान है, इसके कानून बनने पर राष्ट्रपति जी सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति कालेजियम के परामर्श पर न करके इस आयोग के परामर्श पर करेंगे ताकि जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता आ सके।

अनु0 124 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के जजों की योग्यता होगी-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह एक या दो या अधिक उच्चन्यायालय में कम-से-कम 10 वर्षों तक वकालत कर चुका हो। अथवा
  3. राष्ट्रपति की राय में कुशल विधिवेत्ता हो।
  • कुशल विधिवेत्ता के आधार पर अभी तक कोई नियुक्ति नहीं हुई है। 
  • रिटायर होने के बाद जज राजनीतिक पद धारण करेंगे या नहीं करेंगे इस पर संविधान मौन है।

अनु0 126 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की पद रिक्ति पर राष्ट्रपति जी कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति अन्य जजों में से करेंगे।
अनु 127 के अनुसार जब सुप्रीम कोर्ट के सत्र आयोजन में न्यायाधीशों की गणपूर्ति (कोरम) पूरी न हो तो मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति जी की सलाह से तदर्थ ;ंकीवबद्ध न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे। उल्लेखनीय है कि ऐसी नियुक्ति में फ्रांस एवं कनाडा के संविधान का अनुपालन किया गया है। तदर्थ जजों की नियुक्ति की व्यवस्था सिर्फ उच्चतम न्यायालय में है।
अनु0 128 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति जी की सहमति से सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, फेडरल कोर्ट के अवकाश प्राप्त जजों से अनुरोध कर न्यायिक कार्य करा सकते हैं। ऐसे जजों के भत्ते का निर्धारण राष्ट्रपति जी करेंगे।
न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक परिषद् का गठन किया गया है। यह परिषद पीडि़त व्यक्तियों से परिवाद लेती है।

पदावधि:-

  • सुप्रीमकोर्ट के जजों का कार्यकाल अधिकतम 65 वर्ष होगा। इसके पूर्व वह अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति जी को दे सकते हैं। या अनु0 124 एवं अनु0 125 की प्रक्रिया के अनुसार संसद की सहमति से राष्ट्रपति जी हटा सकते हैं।
  • हटाने की प्रक्रिया:- सुप्रीम कोर्ट के जजों को सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर हटाया जाता है। हटाने का प्रस्ताव संसद में आता है। यदि लोकसभा से लाना है, लोकसभा के 100 सदस्यों की पूर्व सहमति आवश्यक है। यदि राज्यसभा में लाना है, तो राज्यसभा के 50 सदस्यों की पूर्व सहमति आवश्यक है। तदोपरान्त् सदन में प्रस्ताव सर्वप्रथम कुल सदस्यों के बहुमत से पुनः उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पास होगा पुनः प्रस्ताव को तीन सदस्यीय जाँच समिति को भेजा जायेगा। जाँच समिति से पास प्रस्ताव को दूसरा सदन पहले कुल सदस्यों के बहुमत से पास करेगा पुनः प्रस्ताव को उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पास करेगा। पुनः प्रस्ताव को वोट देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पास करेगा। अन्त में इस इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति जी उस जज को बर्खास्त करेंगे।
  • सुप्रीम के जज वी0 रामास्वामी के खिलाफ सर्वप्रथम 11 मई 1993 को पद से हटाने का प्रस्ताव सदन में आया, परन्तु पास नहीं हो सका। दूसरी बार 2011 में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के विरूद्ध प्रस्ताव राज्यसभा से पास हो गया और लोकसभा में प्रक्रिया में था कि सौमित्र सेन ने त्यागपत्र दे दिया।
  • रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का जज किसी भी न्यायालय में वकालत नहीं करेंगे।


ेतन:-

  • अनुच्छेद 125 के अनुसार सुप्रीमकोर्ट में जजों का वेतन अनुसूची 2 के प्रारूपानुसार दिया जायेगा, कार्यकाल के दौरान इनके वेतन भत्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता। (राष्ट्रीय वित्तीय आपातकाल को छोड़कर)
  • इनके वेतन का निर्धारण संसद करेगी।
  • इनका वेतन-भत्ता भारत की संचित निधि पर भारित होगा।
  • मुख्य न्यायाधीश का वेतन-एक लाख रूपये प्रतिमाह है।
  • अन्य न्यायाधीश का वेतन-नब्बे हजार रूपये प्रतिमाह है।
  • हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का वेतन-नब्बे हजार रूपये प्रति माह है।
  • अन्य न्यायाधीश का वेतन-अस्सी हजार रूपये प्रतिमाह है।

शपथ:-

  • 124 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जजों को शपथ राष्ट्रपति जी या उनके द्वारा नियुक्त कोई व्यक्ति दिलायेगा।
  • यह शपथ तीसरी अनुसूची के प्रारुपानुसार दिलाया जायेगा।

कार्य:-

उच्चतम न्यायालय के कार्यों को निम्नलिखित तीन स्तरों पर देखा जा सकता है-
1. आरम्भिक क्षेत्राधिकार (अनु0 131):- केन्द्र और राज्य तथा राज्य और राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों को सुनना तथा उस पर निष्पक्ष निर्णय देना सर्वोच्च न्यायालय का आरम्भिक अधिकार है, इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय को संघवाद का सन्तुलन चक्र कहा जाता है।

  • अनुच्छेद 129 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय अभिलेखीय न्यायालय है अर्थात् इसके निर्णयों का साक्ष्यात्मक महत्व हो जाता है, जिसको साक्ष्यमानकर अन्य न्यायालय अपना निर्णय सुनाती है। इसकी अवहेलना न्यायिक अवमानना मानी जाती है।
  • भारतीय संविधान के भाग तीन में मौलिक अधिकारों का व्यापक प्रावधान है। इसकी रक्षा अनु0 32 के अन्तर्गत सुप्रीम कोर्ट करती है। यह उसका आरम्भिक अधिकार है।
  • भारतीय संविधान एवं विधि की रक्षा और उसकी व्याख्या उसका आरम्भिक अधिकार है।
  • अनु0 71 के अनुसार राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन विवाद को उच्चतम न्यायालय सुनती है।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार:- अनु0 132 से अनु0 134 (A)

  •  सर्वोच्च न्यायालय के गठन होने से पूर्व इसका कार्य 1935 के अधिनियम पर आधारित फेडरल कोर्ट करती थी। इसके निर्णय के विरूद्ध अपील लार्ड सभा की (ब्रिटेन में) प्रिवी काउंसिल में होती थी। सर्वोच्च न्यायालय के गठन के बाद सर्वोच्च न्यायालय को सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय बनाया गया। अर्थात् उसके निर्णय के विरूद्ध अपील जजों के बेंच की संख्या बढ़ाकर सर्वोच्च न्यायालय में ही की जायेगी।

सुप्रीम कोर्ट में निम्नलिखित तीन मामलों में अपील होती है-

  1. संवैधानिक मामलों पर अपील (अनु0 32 +134 (A) यदि विषय संविधान की व्याख्या से सम्बन्धित है, तो अनु0 134 (A) के तहत हाईकोर्ट के प्रमाणित किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक मामलों पर अपील सुनेगी।
  2. दीवानी मामलों पर अपील ;133+134 (A)
  3. फौजदारी मामलों पर अपील ;134+134 (A)

अनु0 136 के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अपीलीय अधिकार प्राप्त हैं इसके अन्तर्गत वह हाईकोर्ट के प्रमाणपत्र बिना भी अपील ले सकती है तथा अधीनस्थ न्यायालयों से सीधे अपील ले सकती है।
3. परामर्शीय अधिकार (अनु0 143):-
    राष्ट्रपति जी सार्वजनिक महत्व के विधि एवं तथ्य से सम्बन्धित मामलों पर सुप्रीम कोर्ट से परामर्श ले सकते हैं। यहाँ सुप्रीमकोर्ट परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है और राष्ट्रपति जी परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि यदि राष्ट्रपति जी 26 जनवरी 1950 से पूर्व किये गये सन्धि समझौतों पर परामर्श मांगतें हैं, तो सुप्रीमकोर्ट परामर्श देने के लिए बाध्य है।
महत्वपूर्ण तथ्य:

  • अब तक राष्ट्रपति जी ने सुप्रीमकोर्ट से 14 बार परामर्श मांगा है। पहली बार परामर्श दिल
    ्ली विधि अधिनियम (1950) पर मांगा। 14वीं बार 2004 से सतलज एवं यमुना जल विवाद पर मांगा गया।
  • राम जन्म भूमि मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने परामर्श देने से इंकार कर दिया था और कहा था कि यह राजनीतिक मामला है।
  • संवैधानिक मामलों पर परामर्श देने हेतु कम-से-कम पांच जजों की बेंच होनी चाहिए।
  • अनु0 135 के अनुसार फेडरल न्यायालय का क्षेत्राधिकार उच्चतम न्यायालय में होगा।
  • अनु0 137 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकती है। उल्लेखनीय है कि न्यायिक पुनर्विलोकन का आधार अनु0 13 है।
  • अनु0 139 के अनुसार संसद विधि बनाकर अनु0 32 के अतिरिक्त (मूलाधिकार) अन्य प्रयोजनों हेतु रिट जारी करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को दे सकती है।
  • अनु0 145 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अन्य न्यायालयों पर बाध्यकारी होगा।
  • भारत का प्रथम मुख्य न्यायाधीश हीरालाल जे. कनिया थे।
  • सर्वाधिक लम्बा कार्यकाल वाई वी चन्द्रचूड़ का था।
  • सबसे छोटा कार्यकाल कमल नारायण सिंह का था।
  • राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की स्थापना भारत सरकार द्वारा की गई। (दिल्ली)

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