केन्द्र, राज्य वित्तीय सम्बन्ध

केन्द्र, राज्य वित्तीय सम्बन्ध

केन्द्र राज्य के बीच दो प्रकार के राजकोषीय असंतुलन पाये जाते हैं। यदि केन्द्र सरकार की आय उसके व्यय से अधिक हो जबकि राज्यों की आय व्यय से कम हो तो इसे उध्र्वाधर असंतुलन कहते हैं।

यदि कुछ राज्यों की आय उसके व्यय से अधिक है जबकि कुछ राज्यों की आय उनके व्यय से कम। तो इस प्रकार के असंतुलन को क्षैतिज असंतुलन कहते हैं।

भारत के संविधान में क्षैतिज असंतुलन के लिए कोई प्रावधान नही है परन्तु उध्र्वाधर असंतुलन के लिए संविधान में व्यवस्था दी गयी है।

भारत के संविधान में केन्द्र एवं राज्यों के बीच कार्यों का स्पष्ट बंटवारा है और इस सम्बन्ध में 3 सूचियां हैं-संघ सूची, राज्य सूची तथा संवर्ती सूची।

यह सभी सूचियां संविधान के सातवीं अनुसूची में दी गयी है। केन्द्रीय सूची के अन्तर्गत उन कार्यो को रखा गया है जहां कानून बनाने का कार्य केन्द्र सरकार है। यह विषय राष्ट्रीय महत्व के हैं। इस लिस्ट में 99 विषय शामिल हैं।

राज्य सूची के अन्तर्गत उन विषयों को शामिल किया गया है जिस पर नियम बनाने का अधिकार राज्यों का है। इसमें 61 विषय हैं।

ऐसे क्षेत्र जहां केन्द्र तथा राज्य दोनों मिलकर कार्य करते हैं उन्हें संमवर्ती सूची में रखा जाता है। इसमें 52 विषय रखे गये हैं।
भारत में करारोपण के सम्बन्ध में चैहरी प्रथा लागू है-

ऐसे कर जिसे केन्द्र सरकार लगाती है, वसूल करती है, और उससे मिलने वाली आय को अपने पास रख लेती हैं। जैसे-निगम कर, सीमा शुल्क।
ऐसे कर जो केन्द्र सरकार लगाती है, वसूल करती है परन्तु इससे मिलने वाली आय को राज्यों के साथ बांटती है। जैसे-आयकर, उत्पादन शुल्क।
ऐसे कर जो केन्द्र सरकार लगाती है, वसूल करती है तथा मिलने वाली शुद्ध आय को राज्यों को दे देती है।
ऐसे कर जो केन्द्र सरकार लगाती है परन्तु इनकी वसूली राज्य द्वारा की जाती है और प्राप्त राजस्व भी राज्य अपने पास रख लेता है।
केन्द्र एवं राज्य के बीच उध्र्वाधर असंतुलन को दूर करने के सम्बन्ध में प्रावधान भारतीय संविधान में दिया गया है। केन्द्र द्वारा राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण के तीन तरीके हैं-
1. वित्त आयोग (अनु0-280) संवैधानिक हस्तांतरण (अनु0-275)
2. योजना आयोग (नीति आयोग) के माध्यम से किया जाने वाला हस्तांतरण।
3. विभिन्न मंत्रालयों के माध्यम से अलग-अलग कार्यक्रम चलाकर वित्तीय हस्तांतरण।

वित्त आयोग द्वारा विभाजन योग्य कोष से केन्द्र द्वारा राज्यों को वित्त का संवैधानिक हस्तांतरण किया जाता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 280 में प्रत्येक 5 वर्ष पर वित्त आयोग का गठन का प्रावधान है।

अनु0-275 में वित्त आयोग द्वारा अनुमोदित किये गये अनुदान को राज्यों को दिये जाने का प्रावधान है। योजना आयोग/नीति आयोग के माध्यम से दो प्रकार से वित्तीय हस्तांतरण किये जा सकते हैं जहां एक तरफ यह राज्यों को होने वाले कुल वित्तीय हस्तांतरण का 30-35 प्रतिशत भाग हस्तान्तरित करता है वहीं दूसरी तरफ यह राज्यों को एक मुफ्त सहायता देता है।

केन्द्र द्वारा राज्यों को वित्त प्रदान करने की तीसरी व्यवस्था केन्द्र सरकार द्वारा समर्थित योजनाएं होती है जिनके माध्यम से राज्यों को वित्त हस्तांतरित किया जाता है। भारत में अब तक 14 वित्तीय आयोग गठित किये जा चुके हैं। पहले वित्तीय आयोग के अध्यक्ष के0सी0 नियोगी थे जबकि 11वें के एम0 खुशरों, 12वें के सी0 रंग राजन, तेरहवें के विजय केलकर तथा 14वें के वाई0वी0 रेडड्ी हैं। 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2015-20 तक का है।

13वें वित्त आयोग का गठन जिन कसौटियों पर किया गया था उसमें सबसे अधिक महत्व राजकोषीय क्षमता को दिया गया था जिसे 45.7 अंक प्रदान किये गये थे दूसरे स्थान पर राज्य की जनसंख्या एवं तीसरे स्थान पर राजकोषीय अनुशासन को माना गया था।

13वें वित्त आयोग में यह पाया गया था तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, आन्ध्र प्रदेश, गोवा एवं छत्तीसगढ़ जैसे आठ राज्य हैं जो वित्त हस्तांतरण से पूर्व अतिरेक की स्थिति में थे।

13वें वित्त आयोग ने यह संस्तुति दी कि केन्द्र सरकार के राजस्व घाटें को जो 2009-10 को जी0डी0पी0 का 4.8 प्रतिशत था। 2013-14 में शून्य करना था और 2014-15 में जी0डी0पी0 का अतिरेक प्राप्त करना।

केन्द्र एवं राज्य के समन्वित ऋणों को 2014-15 तक जी0डी0पी0 का 68 प्रतिशत तक करना।

विनिवेश से मिलने वाली राशि को समेकन फण्ड में दिखाना न कि सार्वजनिक खातों में। 13वें वित्त आयोग ने 17,06676 करोड़ कुल हस्तांतरण की सिफारिश की।

13वें वित्त आयोग में सबसे अधिक लाभ प्राप्त करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश एवं आन्ध्र प्रदेश राज्य रहा है। सबसे कम लाभ प्राप्त करने वाले राज्यों में गोवा, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश एवं मेघालय रहें।

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